Monday, 13 February 2017

सामें / कन्हैया लाल कपूर

जिस दिन से वो एक गुम-नाम जज़ीरे की सय्याहत से वापिस आया था।बहुत उदास रहता था।ये बात तो नहीं थी कि उसे इस जज़ीरे की याद रह-रह कर आती थी।क्यूँकि वो जज़ीरा इस क़ाबिल ही कब था कि उसकी ज़ियारत दोबारा की जाए।कोई बड़ा फ़ुज़ूल सा जज़ीरा था।“काना बाना काटा”और वाक़े था वो बहर-उल-काहिल में।वो एक कल्चर वफ़्द के साथ उस जज़ीरे में गया था।

ये सही है कि उस जज़ीरे में रहने वालों के तौर तरीक़े अजीब-व-ग़रीब थे।मिसाल के तौर पर वो चाय या काफ़ी की बजाए सौंफ,का अर्क़ पीते थे।मुसाफ़ा करने की बजाए एक दूसरे के कान ऐंठते थे।कोट के ऊपर क़मीस पहनते थे।नाचते वक़्त रोते और इबादत करते वक़्त ज़ोर-ज़ोर से हंसते थे।ये ऐसी बातें थीं जिन्हें दिलचस्प कहा जा सकता है और न जिन्हें सुनने के लिए लोगों को बे-ताब होना चाहिए था।लेकिन बद-क़िस्मती से जब भी उसने“काना बाना काटा”का ज़िक्र किसी मजलिस में किया उसे सख़्त मायूसी हुई।अव्वल तो“काना बाना काटा”का नाम सुनकर ही सामईन क़हक़हे लगाकर हँसने लगे।नहीं तो किसी ने फ़ौरन चमक कर कहा।“हटाओ यार इस बकवास को।तुम वहाँ क्या गए एक दम Bore बन के लौटे।जब देखो काना बाना काटा।कोई काम की बात करो।”

कई बार उसने मौक़ा महल समझ कर काना बाना काटा का ज़िक्र छेड़ा।लेकिन लोगों ने तो जैसे उसमें दिलचस्पी लेने की क़सम खा रक्खी थी।एक दफ़ा चंद शायरों के दरमियान बैठे हुए उसने कहा।“आप शायद नहीं जानते कि काना बाना काटा में तमाम शायर नस्र में शायरी करते हैं।और वो भी चंद गिने चुने मौज़ूआत पर मसलन गीदड़।खटमल।चमगादड़। सबसे बड़ा शायर उस शख़्स को समझा जाता है जिसने गीदड़ पर सबसे ज़्यादा नज़्में लिखी हों मैं आप को गोला गोक़ुला की एक नज़्म सुनाता हूँ।गीदड़ को मुख़ातब करते हुए वो कहता है।

-----------“ऐ गीदड़।अगर तुझे शब भर नींद नहीं आती।तो तू मार्फ़िया का टीका क्यूँ नहीं लगवालेता।ऐ गीदड़।इतने ज़ोर से मत चिल्ला।कहीं ऐसा न हो।कि तेरा बड़ा सा फेफड़ा फट जाए।”

“और ऐ गीदड़------”

और किसी शायर ने उसकी बात काट कर कहा था।“ख़ुदा के लिए रहम करदो हमारे हाल पर।क्यूँ बोर करने पर तुले हो।”और उसकी हसरत दिल ही दिल में रह गई थी कि गीदड़ वाली सारी नज़्म वो शायरों को सुना न सका।

इसी तरह एक दफ़ा उसने वकीलों की एक महफ़िल में कहा।“आप शायद नहीं जानते,कि काना बाना काटा में वकील को।“टापा”कहा जाता है।जिसके मानी होते हैं।“दिलचस्प झूट बोलने वाला”और जज को“कापा”कहा जाता है जिसके मानी हुए “ग़लत फ़ैसला करने वाला”और गवाह को कहते हैं“मापा”जिसके मानी.....”

इस पर एक वकील ने उसकी तरफ़ इशारा करते हुए कहा था।और आप को“बापा”कहा जाता है।“जिसके मानी हुए फ़ुज़ूल बकवास करने वाला।”

उस दिन के बाद उसने मामूल बना लिया था कि किसी मजलिस में काना बाना काटा का ज़िक्र नहीं करेगा।बल्कि अकेले दुकेले आदमी के साथ बात चलाने की कोशिश करेगा।एक दिन सड़क पर चलते हुए एक फ़क़ीर ने उस से पैसे का सवाल किया।उसने फ़क़ीर की हथेली पर एक लकड़ी का सिक्का जो वो काना बाना काटा से लाया था रखते हुए कहा।

“जानते हो ये किस मुल्क का सिक्का है।”

“नहीं जानता।”

“ये काना बाना काटा का सिक्का है।जानते हो ये मुल्क कहाँ वाक़े है।”

“नहीं जानता।”

बहर-उल-काहिल में,जापान से तीन हज़ार......”

“जी होगा।लेकिन ग़रीब परवर मैंने तो पैसे का सवाल किया था।”

“एक दूकानदार से साबुन खरीदते वक़्त उसने कहा।“काना बाना काटा” में साबुन नहीं होता।दर-अस्ल उसकी ज़रूरत भी नहीं वहाँ आम तौर पर लोग एक साल बाद नहाते हैं।अजीब मुल्क है।वहाँ दूकानदार को चम्पीटो कहते हैं जिसके मानी हुए......”

दूकानदार उसकी बात को नज़रअंदाज़ करते हुए पूछा।“अच्छा तो आप को कौन सा साबुन चाहिए।”

एक बार बाग़ में टहलते हुए उसकी मुलाक़ात एक ज़ईफ़ आदमी से हुई।उसने सोचा।मौक़ा अच्छा है।इस से फ़ायदा उठाया जाए।आदाब बजा लाने के बाद उसने कहा।“बड़े मियाँ आप की क्या उम्र होगी।”

“काना बाना काटा में किसी शख़्स को साठ साल के बाद ज़िंदा रहने की इजाज़त नहीं।”

“काना बाना काटा क्या बला है।”

“बला नहीं साहिब।एक बड़ा अजीब जज़ीरा है।बहर-उल-काहिल में जापान से....”

“अच्छा होगा।”

“लेकिन क्या ये अजीब बात नहीं।कि वहाँ साठ साल के बाद किसी को ज़िंदा......”

“तो क्या उसे फांसी के तख़्ते पर चढ़ा दिया जाता है।”

“जी हाँ।”

“बड़ा बेहूदा मुल्क है।”

“जी नहीं।बेहूदा नहीं।देखिए ना।इस क़ानून का ये फ़ायदा है कि.....”

“अजी रहने दीजिए।बुज़ुर्गों के साथ ऐसा बे रहिमाना सुलूक !”

“सुनिए तो।आप ने पूरी बात तो सुनी नहीं।”

“माफ़ कीजिए।मैं ऐसी फ़ुज़ूल बातें नहीं सुना करता।”

आख़िर जब ये हर्बा भी कोई ख़ास कामियाब न रहा तो उसने एक और तदबीर सोची।काना बाना काटा से वो अपने साथ चंद संग-तराशी के नमूने लाया था।वो उसने अपने कमरे में रख दिए।उसका ख़याल था कि जब कोई मुलाक़ाती उससे मिलने आएगा।तो ज़रूर उनपर नज़र दौड़ाने के बाद उनसे मुतअल्लिक़ सवाल करेगा,और बात चल निकलेगी। लेकिन उसके सब अंदाज़े ग़लत साबित हुए।अक्सर मुलाक़ातियों ने उनकी जानिब देखा तक नहीं।एक आध ने देखने के बाद फ़र्ज़ कर लिया कि किसी कबाड़ी से औने-पौने चंद फ़ुज़ूल मुजस्समे ख़रीद लिए गए हैं एक दिन उसने एक मुलाक़ाती की तवज्जे एक मुजस्समे की तरफ़ मबज़ूल कराते हुए कहा।

“ये किसका मुजस्समा है।”

“किसी बंदर का मालूम होता है।”

“अरे नहीं।बंदर का नहीं।ये काना बाना काटा के मशहूर फ़लसफ़ी“मोमो कोको”का है।”

“हुंह।”

“मोमो कोको बड़ा।पहुँचा हुआ फ़लसफ़ी था।उसके ख़याल में इंसान की सबसे बड़ी कमज़ोरी औरत नहीं।अफ़यून है।ख़ुद“मोमो कोको”हर रोज़ तीन से छःमाशे अफ़यून खाया करता था।एक दिन जब उसे अफ़यून न मिली।तो जानते हो इसने क्या किया।”

“शायद ख़ुदकशी कर ली।”

“नहीं ख़ुदकशी नहीं की।वो एक पौदा जड़ और पत्तों समेत खा गया।लेकिन जब उसे....”

“अच्छा यार कोई और बात करो।ये किसका ज़िक्र ले बैठे।”

“उसे सबसे ज़्यादा अफ़सोस तब होता था जब बात चल निकलने के बाद दरमियान में रुक जाती।मसलन एक इतवार को उसका एक अख़बार नविस दोस्त उसके पास बैठा हुआ था,उसने उसे मुख़ातब करते हुए कहा।“आप शायद नहीं जानते।कि काना बाना काटा”में लोग अख़बार पढ़ने के लिए नहीं आग जलाने के लिए खरीदते हैं।”

“लेकिन वो अख़बार पढ़ते क्यूँ नहीं।”

“उनका ख़याल है कि अख़बारों में स्कैंडल के अलावा कुछ नहीं होता।”

“ये तो कोई माक़ूल दलील नहीं।”

अपना-अपना ख़याल है।और वहाँ सब अख़बारों का नाम एक सा होता है।यानी“रगड़ रगड़”जिसके मानी हुए......”

“कुछ भी होए।कोई काम की बात करो।”

और एक दिन तो उसके साथ एक अजीब सानिहा पेश आया।उसका एक दोस्त जो पेरिस से तीन साल के बाद वापिस आया था।उसे मिलने के लिए।उसने सोचा कि ज़रूर काना बाना काटा के कुछ हालात सुनने पर रज़ामंद होगा।उसने अभी तमहीद ही बांधी थी कि उसके दोस्त ने मुस्कुरा कर कहा।“लेकिन यार क्या बात है फ़्रांस की।बड़ा दिलचस्प मुल्क है और पेरिस!पेरिस! ज़िंदा दिलों का शहर है।हर रात शब्ब-ए-बरात का दर्जा रखती है।आर्टिस्ट बड़ी ला उबाली तबीयत के मालिक होते हैं।गलियाँ बड़ी पुर-इसरार,होटल दुल्हनों की तरह सजाए जाते हैं।रेलवे स्टेशनों पर परिस्तान का धोका होता है।सड़कें इतनी साफ़ शफ़्फ़ाफ़ कि हाथ लगे मैली हो जाएं।सियास्तदान मुआमला और मुहिम और नुकता दाँ।शराब।आह ज़ालिम गोया शराब नहीं।एक तेज़ छुरी है कि उतरती चली जाए वग़ैरा वग़ैरा।”

आख़िर दो घंटे के बाद जब उसके दोस्त ने पेरिस का तज़किरा ख़त्म किया तो उसने महसूस किया कि ऐसे शख़्स से काना बाना काटा का ज़िक्र करना परे दर्जे की हिमाक़त थी।

जब उसका दर्जा बेकार साबित हुआ तो खोया-खोया सा रहने लगा।उसे इंसानों से वहशत सी होने लगी।ये कैसे लोग हैं।इन्हें अपने सिवा किसी चीज़ में दिलचस्पी नहीं।सिर्फ़ रोटी कमाने का धंदा उनके दिल-व-दिमाग़ पर सवार है।काना बाना काटा का ज़िक्र न सुनकर ये अपने साथ कितना ज़ुल्म कर रहे हैं।वो जितना उन बातों के मुतअल्लिक़ सोचता उसकी उदासी में उतना ही इज़ाफ़ा होता।

एक दिन उसने अपने आपको ज़रूरत से ज़्यादा उदास पाया।उसने एक डाक्टर की दूकान का रुख़ किया।इत्तिफ़ाक़ से डाक्टर के पास एक मरीज़ बैठा हुआ था।जब वो दवा लेकर रुख़सत हुआ।तो डाक्टर ने कहा।“फ़रमाइए आपको क्या शिकायत है।”

“हर वक़्त उदास रहता हूँ।”

“वजह?”

“ब-ज़ाहिर कोई वजह नज़र नहीं आती।”

“ये शिकायत कब से है।”

“जब से काना बाना काटा से लौटा हूँ।”

“काना बाना काटा।ये किसी मुल्क का नाम है क्या?”

“जी हाँ,एक जज़ीरा है।बहर-उल-काहिल में।”

“जापान से कितना दूर है।”

“कोई तीन हज़ार मील।”

“आप वहाँ किस सिल्सिले में तशरीफ़ ले गए थे।”

“एक कल्चर वफ़्द के साथ गया था।”

“आप फ़नकार हैं।”

“मुसव्विर हूँ।”

“तो ख़ूब सैर की।”

“जी हाँ एक महीना रहा”

“तो क्या-क्या देखा वहाँ आप ने।”

“बहुत कुछ।बड़ा अजीब जज़ीरा है।”

“हमें भी कुछ बताइए।”

“वहाँ डॉक्टर नहीं होते।”

“डॉक्टर नहीं होते।तो फिर जो लोग बीमार पड़ते हैं वो इलाज किस से कराते हैं।”

“चूँकि उन्हें मालूम है कि इलाज करने वाला कोई नहीं।इसलिए वो बीमार ही नहीं पड़ते।”

“अच्छा कोई और बात बताइए।”

“वहाँ मकानों के दरवाज़े नहीं होते।”

“तो लोग अंदर किस तरह आते हैं।”

“खिड़कियाँ जो होती हैं।”

“अच्छा और क्या देखा।”

“वहाँ बच्चे की पैदाइश पर मातम मनाया जाता है।”

“वो क्यूँ।”

“वो कहते हैं।कि हर नया बच्चा अपने साथ नई मुसीबतें लाता है।”

“बहुत ख़ूब।अच्छा मैं आप के लिए दवा तैय्यार कर लूँ।बाक़ी बातें.....”

“दवा रहने दीजिए।अब उसकी ज़रूरत नहीं।”

“अभी तो आप कह रहे थे कि आप हर वक़्त उदास रहते हैं।”

“जिस शैय की कमी मुझे उदास रखती थी वो मुझे मिल गई।”

“वो कौन सी शैय है।”

“सामे!”

डॉक्टर उसका मुँह तकने लगा लेकिन वो चुपके से आदाब अर्ज़ है कहकर दूकान से बाहर चला गया।

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