Monday, 13 February 2017

अफ़्वाहों के लतीफे / KHWAJA HASAN NIZAMI

क़ैसरा के बच्चे कोसने में आते हैं

ख़्वाजा हसन निज़ामी

ख़ुदा की मार उस खोजड़े पेटी लड़ाई को।नन्ने के अब्बा को ख़बर नहीं हो क्या गया है किसी ने कुछ खिला दिया है या कुछ कर दिया है या दुश्मनों के दिमाग़ में कुछ ख़लल आ गया है।लड़ाई के पीछे ऐसे हाथ धोकर पड़े हैं कि किसी अरमान उधर से ख़याल नहीं हटता।लाखों औरतें बेवा हो गईं।बे-शुमार बच्चे यतीम हो गए।घर बार जड़ों से खूद गए।लेकिन नन्ने के अब्बा के सर से लड़ाई का जिन न उतरा।नौज ऐसे मरदूदे बही किस काम के।समझाते-समझाते सर चकरा गया।मगर उनके कान पर जूँ तक ना चली।

ख़ुदा रखे मेरे जवान जमान लालों को ख़्वाह मख़्वाह सारी दुनिया के कोसने में आते हैं।भाड़ में जाए ये बादशाही चूल्हे में जाए ये तख़्त-व-बख़्त।मुझे दो रूखी सूखी रोटियाँ बस हैं।मैं कल-कल की बादशाही एक दम को भी नहीं चाहती।मेरे बच्चे जिएँ सौ बर्स।बस यही मेरी बादशाही है।

क़ैसरा दिल ही दिल में ये बातें कर रही थी कि सामने से वली अहद आता दिखाई दिया और दूर से बोला अमान अमान भूक अमान रोटी।

क़ैसरा ने वली अहद की चट-चट बुलाईं लें।और कहा चलो बेटा।दस्तर ख़्वान बिछा हुआ है ज़रा तुम्हारे बावा जान को बुलालूँ सब मिलकर खाना खाना।

वली अहद ने ठनक कर कहा।नहीं बी हमें तो अभी खिला दो।अब्बा जी ख़बर नहीं कब तक आएंगे वो तो लड़ाई के काग़ज़ पढ़ रहे हैं।

वली अहद की बात पूरी न हुई थी कि क़ैसरा की छोटी लड़की बिसूरती हुई आई और माँ के लहंगे को पकड़ कर कहा।अरी बी आज रोटी दोगी।या भूका मारोगी।

क़ैसरा बच्चों को लेकर दालान में गई।खाने पर बिठाया।और लपकी हुई क़ैसर के पास पहुंची।क़ैसर उस वक़्त उपलों की ध्वनि रमाए एक खोपड़ी सामने रखे कुछ मंत्र पढ़ रहा था।काले माश आग में डालता जाता था और सींदुर के टीके खोपड़ी में लगा रहा था।

क़ैसरा ये तमाशा देख कर पहले तो बहुत डरी।मगर फिर ज़रा जी कड़ा करके बोली:-

ए तुम क्या कर रहे हो,चलते नहीं।खाना ठंडा हो रहा है।क़ैसर ने एक हूँ की और हाथ के इशारे से कहा तुम चलो बच्चों को खिलाओ मैं अभी आता हूँ।

क़ैसरा बोली।बस हूँ।हाँ हो चुकी।लूना चमारी को बुला चुके।दो निवाले चलकर खिलाओ।बच्चों को खिलाओ जो भूक के मारे बिलबिलाए जाते हैं।

क़ैसर ने ये सुनकर त्यौरी चढ़ाई।और ज़ोर से धुतकारने की एक हूँ की।

बेचारी क़ैसरा काँप गई और आँखों में आँसू भरे वहाँ से उल्टी फिरी।रास्ता में उसने कहा अरे मेरी तो क़िस्मत फूट गई।ख़ुदा की संवारास मू-ए-पादरी को जिसने उस दीवाने मजज़ूब से मेरा निकाह पढ़ाया।मैं क्या जानती थी कि मेरी तक़दीर ऐसे पत्थर पड़ जाएँ गे।

ये कहती हुई दस्तर ख़्वान पर आई और रोटी का टुकड़ा तोड़कर खाने लगी।

इतने में क़ैसर भी आया और चुपचाप खाना खाने लगा।क़ैसरा से बात की न बच्चों से कुछ देर की ख़ामोशी के बाद क़ैसरा बोली।

ए देखना मैं तुम से एक बात कहूँ।अगर ख़फ़ा न हो।मेरा तो तुम्हारे मिज़ाज से नाक में दम आ गया है।बात कहते कलेजा लरज़ता है।

क़ैसर ने गर्दन मोड़ कर कहा क्या बकती हो।मुँह से फूट चको।जो बकना है बको।

क़ैसरा सहम गई और कहा इसी वास्ते तो मैं तुम्हारे मुँह नहीं लगती।बात कहना ज़ुल्म है।उठे फाड़ खाने को।

क़ैसर ने नर्मी से कहा।कहोगी भी आख़िर क्या बात है।

क़ैसरा ने कहा मैं इस मोज़न लड़ाई के वास्ते कहती थी।मेरा तो दम सन्नाटों में जाता है।देखो इस भूंचाल का अंजाम क्या होता है।ओ तक़्दीर क्या-क्या चक्कर दिखाती है।तुम्हें तो लड़ाई भिड़ाई में मज़ा आता है।और मेरे बच्चे मुफ़्त में कोसने खाते हैं।

क़ैसर ने अभी कुछ जवाब न दिया था।कि वली अहद बोला।कि हाँ अब्बा-अब्बा जी सच्च तो कहती हैं।आप नाहक़ दुनिया में खून खराबा करते हैं।सारी दुनिया से आप क्यूँ कर जीत सकेंगे।ख़ुदा देखा नहीं अक़्ल से पहचाना।

क़ैसर ये सुनकर मुस्कुराया।और अपनी जेब में से एक बक्स निकाला और उसको खोल कर बक्स के अंदर एक जुज़दान था।उसको खोला तो एक और जुज़दान निकला।उसको खोला तो तीसरा निकला।ग़र्ज़ इसी तरह से सात जुज़दानों के अंदर से एक आइना बरामद हुआ।क़ैसर ने इस आइने को धूप के रुख़ चमकाया।तो यकायक सामने एक बाग़ पैदा हो गया।क़ैसरा और वली अहद इस बाग़ को देखकर हैरान रह गए।इसके बाद क़ैसर ने इस आइने को फिर चमकाया।तो वो बाग़ जलकर ख़ाक हो गया।

क़ैसर ये तमाशा दिखा कर बोला देखा मेरे मंत्रों को।जब ये आइना मेरे पास है तो मैं कोसने काटने की क्या परवा करूँ।मेरा किसी के कोसने से बाल बाका न होगा।

क़ैसरा और वली अहद शिशदर बुत बने खड़े थे और कहते थे कि बेशक इस जादू का जवाब दुनिया में कहीं नहीं।

ये आइने की अफ़्वाह दिल्ली में बहुत मशहूर हुई थी।और इसके और कुछ और हवाशी भी थे जिनका लिखना अबस था।लिहाज़ा सिर्फ़ आइना की अफ़्वाह पर मैंने दिल्ली की मस्तूरात के वलवले का रंग चढ़ा दिया।और समझ लिया कि वो क़ैसर जर्मन-व-क़ैसरा नहीं दिल्ली के कोई ज़रकोब या रोज़गार का ख़ानदान होगा।जिनकी हालत पर ये ख़याल तसनीफ़ किया गया।और सुनने वालों को उसने मज़ा दिया।

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