Monday, 13 February 2017

अल गिलहरी / KHWAJA HASAN NIZAMI

गिलहरी एक मोज़ी जानवर है।चूहे की सूरत चूहे की सीरत।वो भी अज़ाद हिन्दा ये यही सताने वाली।चूहा भूरे रंग का ख़ाकी लिबास रखता है,फ़ौजी वर्दी पहनता है।

गिलहरी का रंग चूल्हे की सी राख का होता है।पीठ पर चार लकीरें हैं।जिसको लोग कहते हैं कि हज़रत बीबी फ़ातिमा रज़ी अल्लाह अनहा का पंजा है।गिलहरी की दुम चूहे के बर-ख़िलाफ़ है,चूहे की दुम पर बाल नहीं होते उसकी दुम गफ्फेदार है।गिलहरी का सर चपटा होता है,चूहे और उसके सर में थोड़ा ही फ़र्क़ है।गोया दोनों का दिमाग़ यकसाँ बनाया गया है।चूहा भी आदमियों की चीज़ें ख़राब करने की तज्वीज़ें मग़्ज़ से उतारता है और गिलहरी भी।

चूहा मुँह से खाता है और अगले हाथों से निवाला उठाकर उसे कुतरता है मगर गिलहरी की तरह हमेशा नहीं कभी-कभी और गिलहरी तो हमेशा उकड़ूँ बैठ जाती है।हाथों में खाने की चीज़ लेती है।दुम हिलाती जाती है।थिरकती है।फुदकती है और कुतर-कुतर कर खाना खाती है।

चूहा बेचारा बिलों में बोरियों में मैले कुचैले सूराखों में घर बनाता है।गिलहरी बड़ी तमीज़दार है।ये अक्सर मकानों की छतों में घोंसला बनाती है।जिस घर में इन जनाब का जी चाहा बे पूछे गूछे जा पहुंचती हैं और रज़ाई तोशक लिहाफ़ या जो रुई दार चीज़ सामने आई उसको कतर डालती हैं।उसमें से रुई निकालती हैं और अपने घर में उसका गद्दा बनाकर बिछाती हैं।और फिर नरम-नरम बिस्तर पर बच्चे देती हैं।

रात भर घर की मालिक हैं।सुबह हुई और ये चल चल।चल्ल चल्ल,चल चल,चल,चल्ल चल्ल,चल्ल चल्ल,चल्ल चल्ल कहती अपनी बोली में ख़ुदा की इबादत करती या आदमी को गालियाँ देती हुई बाहर निकल जाती हैं।सारा दिन है और उनका पेट है।जंगल पहुँचती हैं।फूलदार दरख़्तों पर चढ़ जाती हैं और ख़ूब खाती पीती हैं।सड़कों पर दौड़ती फिरतीं हैं।जहाँ ज़रा सा खटका हुआ और उन्होंने दोनों हाथ ऊंचे उठाकर जिनके पंजे झुके होते हैं और पैरों के बल खड़े होकर इधर उधर घबरा कर देखा।चल चल के दुम को हिलाया।क्यूँकि उनकी दुम हर पल के साथ थिरकती है।कोड़े की तरह तड़प कर बलखाती है।और भाग गईं।गिलहरी के बच्चे भी चूहे की तरह लाल गोश्त की बोटी होते हैं।उन पर बाल नहीं होते।आँखें बंद होती हैं।कुछ दिन बाद बाल निकलते हैं।आँखें खुलती हैं और दुनिया में ग़रीब आदमी के दो सतने वाले और बढ़ जाते हैं।

मैंने ऊपर कहा अल गिलहरी।अरबी अल को मैंने अंग्रेज़ी दी की तरह इस मोज़न से अलग रक्खा है।मिला देता तो गिलहरी के काटने का डर था।बड़ी शरीर है,बड़ी फ़ितरी है।मेरी बादशाही हो तो सबसे पहले गिलहरियों का क़तल-ए-आम कराऊँ।और उसके ज़न बच्चे कोल्हू में पिलवा दूँ।

मेरी ख़ूबसूरत छत गीरी में जगह-जगह भम्बाक़े लगा दिए हैं। लक्कड़ी लेकर मारता हूँ तो क्या मजाल बाहर निकल जाए।छत गीरी के अंदर दौड़ती फिरती है।मैं दौड़ता दौड़ता हाँप जाता हूँ पसीना सारे कपड़ों को तर कर देता है।मगर ये बे-ग़ैरत उछलती फिरती है।उधर से इधर इधर से उधर।

कौंसिल में सवाल

मेरा इरादा है कि किसी ऑनरेबल मेंबर कौंसिल को लिखूँ कि अबके अल गिलहरी की बाब भी एक सवाल करें।जिसके अलफ़ाज़ ये हों।

क्या गर्वनमैंट के इल्म में ये अमर मौजूद है कि हिंदोस्तान की निहायत वफ़ादार रियाया को एक मोज़ी जानवर गिलहरी ने बहुत सता रक्खा है।

गर्वनमैंट की वो मसाई जमीला कौंसिल को याद हैं जो अरसा-ए-दराज़ से चूहों के ख़िलाफ़ इस्तिमाल की जाती हैं।यानी उनको पकड़ कर हलाक कर देने का पूरा ब्ंदोब्स्त कर दिया गया है।

लिहाज़ा मैं निहायत अदब से ये मुसव्विदा पेश करना चाहता हूँ कि अल गिलहरी के मसला पर भी तवज्जे की जाए।इस जानवर में भी पसू होते हैं।ये भी बीमारियों की छूत को बाहर से घरों में लाती है।ये बहुत ख़तरनाक मुआमला है।गर्वनमैंट म्यूनसिंपल कमेटियों को हिदायत करे।कि आइंदा गिलहरियाँ हर जगह पकड़ी जाएँ और हलाक की जाएँ।

मुफ़्तियान-ए-हिंद से इस्तिफ़सार

क्या फ़रमाते हैं मुफ़्तियान दीन बीच इस मसला के कि एक घरेलू ग़ैर पालतू जानवर जिसको गिलहरी और इस वक़्त अल गिलहरी भी कहते हैं।मुतबर्रक-व-मुक़द्दस किताबों को काट डालता है और सरीहन कुतुब-ए-मुक़द्दसा की तौहीन करता है।आया ऐसे बद-ज़ात हैवान पर जो परिंदा है अपने दौड़ने और भागने और दीवारों छतों पर फरती से चढ़ जाने के सबब और दरिन्दा है अपने नोकदार दाँतों के नाजाएज़ इस्तेमाल करने में मोज़ी का इतलाक़ आएद होता है।या नहीं ओ कतललमोज़ी क़ब्ल-उल-एज़ा का हुक्म उस पर सादिक़ आता है या नहीं।बे-नवा तौजरवा

ऐ अल गिलहरी मुझे अफ़सोस है कि तेरा नाम इस मज़मून के लिखने से उर्दू अदब में शामिल हो गया।मैंन चाहता था कि तेरा ज़िक्र एक शीरीं राहत जान-ए-ज़बान में आए।मगर क्या करूँ जैसा तूने मुझको सताकर बे-बस किया है।ऐसा ही तेरा तज़किरा जबरन मेरे क़लम के मुँह में आया।और चल चल करता निकल गया।

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