Monday, 13 February 2017

कलीद की कामियाबी / शफ़ीक़ुर्रहमान

हम लोग ख़ुश-क़िसमत हैं क्यूँकि एक हैरत अंगेज़ दौर से गुज़र रहे हैं। आज तक इंसान को तरक़्क़ी करने के इतने मौके़ कभी मयस्सर नहीं हुए, पुराने ज़माने में हर एक को हर हुनर ख़ुद सीखना पड़ता था, लेकिन आज- कल हर शख़्स दूसरों की मदद पर ख़्वाह मख़्वाह तुला हुआ है और बिला-वजह दूसरों को शा-हे-राह कामियाबी पर गामज़न देखना चाहता है।

इस मौज़ू पर बे-शुमार किताबें मौजूद हैं।अगर आप की माली हालत मख़दूश है तो फ़ौरन“लाखों कमाओ” ख़रीद लीजिए।अगर मुक़द्दमा बाज़ी में मशग़ूल हैं तो “रहनुमा-ए-क़ानून” ले आइए। अगर बीमार हैं तो“घर का तबीब”पढ़ने से शिफ़ा यक़ीनी है। इस तरह “कामियाब-ए-ज़िंदगी”,“कामियाब-ए-मुर्ग़ी-ख़ाना”,“रेडीयो की किताब”,“कलीद-ए-कामियाबी”,“कलीद-ए-मवेशीयाँ” और दूसरी ला-तादाद किताबें बनी नौ इंसान की जो ख़िदमत कर रही हैं,इससे हम वाक़िफ़ हैं।

मुसन्निफ़ इन किताबों से इस क़दर मुतास्सिर हुआ कि उसने अज़-राह-ए-तशक्कुर कलीद-ए-कामियाबी, हिस्सा दोम, लिखने का इरादा किया,ताकि वह चंद नुक्ते जो इस इफ़ादी अदब में पहले शामिल न हो सके, अब शरीक कर लिए जाएं।

अज़मत का राज़

तारीख़ देखिए। दुनिया के अज़ीमतरीन इंसान ग़मगीं रहते थे। कार-लाईल का हाज़मा ख़राब रहता था। सीज़र को मिर्गी के दौरे पड़ते थे। रूस का मशहूर IVAN नीम पागल था। ख़ुद-कशी की कोशिश करना कलाइव का महबूब मश्ग़ला था। काण्ट को ये ग़म ले बैठा कि उसका क़द अज़ीम अदब मग़्मूम मूड की तख़लीक़ है और अक्सर जेलों में लिखा गया है। लिहाज़ा ग़मगीं हुए बगै़र कोई अज़ीम काम करना ना-मुमकिन है। ग़म ही अज़मत का राज़ है....या ग़म आसरा तेरा....!

तो फिर आज ही से रंजीदा रहना शुरू कर दीजिए। बहुत थोड़े मुल्क ऐसे हैं,जहाँ ग़मगीं होने के इतने मौके़ मयस्सर हैं,जितने हमारे हाँ। अभी चंद अशआर पढ़िइए, हमारी शायरी माशा-अल्लाह हज़्न-व-अलम से भरपूर है। सोचिए कि ज़िंदगी प्याज़ की तरह है,,छीलते रहिए अंदर से कुछ भी बरामद नहीं होता। रिश्तेदारों और उनके तानों को याद कीजिए। पड़ोसी अन-क़रीब आप के मुतअल्लिक़ नई अफ़्वाहें उड़ाने वाले हैं। जिन लोगों ने आप से क़र्ज़ लिया था,एक पाई भी अदा नहीं की(वैसे जो क़र्ज़ आप ने लिया है,वह भी अदा नहीं हुआ)........ज़िंदगी कितनी मुख़्तसर है?...... मरने के बाद क्या होगा?...... शाम की गाड़ी से कोई पंद्रह बीस रिश्तेदार बगै़र इत्तिला दिए आ जाएंगे। उनके लिए बिस्तरों का इंतिज़ाम करना होगा। ये चिश्ती साहब अपने आप को क्या समझते हैं.....? पिछले हफ़्ते क़ुतबुद्दीन साहब ने खाने पर सारे शहर को मदऊ किया, सिवाए आप के ......वग़ैरा-वग़ैरा।

अब आप ग़मगीं हैं।आहें भरिए। माथे पर शिकनें पैदा कीजिए।हर एक से लड़िऐ।अन-क़रीब आप इस बरतरी से आश्ना होंगे जो सदा बे-ज़ार रहने वालों का ही हिस्सा है।वो एहसास जो इंसान के नित्शे का फ़ौक़-उल-इंनसान बनाता है।अब आप शायद कोई अज़ीम काम करने वाले हैं.......!

अज़ीम काम कर चुकने के बाद अगर मूड बदलना मंज़ूर हो तो फ़ौरन बाज़ार से ‘मसरूर हो’ मुस्कुराते रहिए,या ऐसी कोई किताब लेकर पढ़िए और ख़ुश हो जाइए।

अपने आप को पहचानो

हुकमा का इसरार है कि अपने आप को पहचानो। लेकिन तजुर्बे से साबित हुआ कि अपने आप को कभी मत पहचानो,वर्ना सख़्त मायूसी होगी। बल्कि हो सके तो दूसरों को भी मत पहचानो।एमर्सन फ़रमाते हैं कि “इंसान जो कुछ सोचता है, वही बनता है।”

कुछ बनना किस क़दर आसान है,कुछ सोचना शुरू कर दो और बन जाओ। अगर ना बन सको तो एमर्सन साहब से पूछो।

ख़्वाब और अमल

अपने ख़्वाबों को अमली जामा पहनाईऐ।ये जामा जितना जल्द पहनाया गया, उतना ही बेहतर होगा।उन लोगों से भी मश्वरा कीजिए।जो इस क़िस्म के जामे अक्सर पहनते रहते हैं।

हाफ़िज़ा तेज़ करना

अगर आप को बातें भूल जाती हैं तो इसका मतलब ये नहीं कि आप का हाफ़िज़ा कमज़ोर है।फ़क़त आप को बातें याद नहीं रहतीं।इलाज बहुत आसान है।आइन्दा सारी बातें याद रखने की कोशिश ही मत कीजिए।आप देखेंगे कि कुछ बातें आप को ज़रूर याद रह जाऐंगे।

बहुत से लोग बार बार कहा करते हैं.......हाय यह मैं ने पहले क्यूँ नहीं सोचा? इस से बचने की तरकीब यह है कि हमेशा पहले से सोच कर रखिए और या फिर ऐसे लोगों से दूर रहिए,जो ऐसे फ़िक़रे कहा करते हैं।दानिश-मंदों ने मुशाहिदा तेज़ करने के तरीक़े बताए हैं कि पहले फुर्ती से कुछ देखिए,फिर फ़हरिस्त बनाइए कि अभी आप ने क्या-क्या देखा था।इस तरह हाफ़िज़े की ट्रेनिंग हो जाएगी और आप हाफ़िज़ बनते जाएंगे।लिहाज़ा अगर और कोई काम न हो तो आप जेब में काग़ज़ और पैंसिल रखिए।चीज़ों की फ़हरिस्त बनाइए और फ़हरिस्त को चीज़ों से मिलाया कीजिए.......बड़ी फ़रहत हासिल होगी।

मशहूर फ़लसफ़ी शो-पिनहार सैर पर जाते वक़्त अपनी छड़ी से दरख़्तों को छुवा करता था।एक रोज़ उसे याद आया कि पुल के पास जो लंबा दरख़्त है,उसे नहीं छुआ।वह मर्द-ए-आक़िल एक मील वापस गया और जब तक दरख़्त न छू लिया,उसे सुकून-ए-क़ल्ब हासिल न हुआ।

शो-पिनहार के नक़श-ए-क़दम पर चलिए।इस से आप का मुशाहिदा इस क़दर तेज़ होगा कि आप और सब हैरान रह जाएंगे।

ख़ौफ़ से मुक़ाबला

दिल ही दिल में ख़ौफ़ से जंग करना बे-सूद है।क्यूँकि डरने की ट्रेनिंग हमें बचपन से मिलती है और शुरू ही से हमें भूत, चुड़ैल,बाऊ और दीगर चीज़ों से डराया जाता है।अगर आप को तारीकी से डर लगता है तो तारीकी में जाइए ही मत। अगर अंधेरा हो जाए तो जल्दी से डरकर रौशनी की तरफ़ चले आइए।आहिस्ता-आहिस्ता आप को आदत पड़ जाएगी और ख़ौफ़ खाना पुरानी आदत हो जायगी।

तन्हाई से ख़ौफ़ आता हो तो लोगों से मिलते रहा कीजिए।लेकिन एक वक़्त में सिर्फ़ एक चीज़ से डरिए वर्ना ये मालूम न हो सकेगा कि इस वक़्त आप दर-अस्ल किस चीज़ से ख़ौफ़-ज़दा हैं।

वक़्त की पाबंदी

तजुर्बा यही बताता है कि अगर आप वक़्त पर पहुँच जाएं तो हमेशा दूसरों का इंतिज़ार करना पड़ता है।दूसरे अक्सर देर से आते हैं।चुनांचे ख़ुद भी ज़रा देर से जाइए। अगर आप वक़्त पर पहुँचे।तो दूसरे यही समझेंगे कि आप की घड़ी आगे है।

वहम का इलाज

अगर आप को यूँही वहम सा हो गया है कि आप तंदरुस्त हैं तो किसी तबीब से मिलिए।ये वहम फ़ौरन दूर हो जाएगा।लेकिन अगर आप किसी वहमी बीमारी में मुबतला हैं तो हर रोज़ अपने आप से कहिए......मेरी सहब अच्छी हो रही है ......मैं तंदरुस्त हो रहा हूँ..........

एहसास-ए-कमतरी हो तो बार-बार मंदर्जा ज़ेल फ़िक़रे कहे जाएं.......

मैं काबिल हूँ।मुझ में कोई ख़ामी नहीं।जो कुछ मैं ने अपने मुतअल्लिक़ सुना, सब झूट है।मैं बहुत बड़ा आदमी हूँ।(ये फ़िक़रे ज़ोर ज़ोर से कहे जाएं ताकि पड़ोसी भी सुन लें)

बे-ख़्वाबी से निजात

अगर नींद न आती हो तो सोने की कोशिश मत कीजिए।बल्कि बड़े इन्हिमाक से फ़िलॉसफ़ी की किसी मोटी सी किताब का मुताला शुरू कर दीजिए।फ़ौरन नींद आ जाएगी।मुजर्रब नुस्ख़ा है।रियाज़ी की किताब का मुताला भी मुफ़ीद है।

हमेशा जवान रहने का राज़

अव्वल तो ये सोचना ही ग़लत है कि जवान रहना कोई बहुत बड़ी ख़ूबी है।इस उम्र के नुक़्सानात फ़वाएद से कहीं ज़्यादा हैं। मुलाहज़ा हो वह शेअर

ख़ैर से मौसम-ए-शबाब कटा

चलो अच्छा हुआ अज़ाब कटा

ताहम अगर आप ने हमेशा जवान रहने का फ़ैसला कर लिया है, तो बस ख़्वाह मख़्वाह यक़ीन कर लीजिए कि आप सदा जवान रहेंगे।आप के हम-उम्र बे-शक बूढ़े हो जाएं, लेकिन आप पर कोई असर ना होगा।जवानों की सी हरकतें कीजिए।असली नौजवानों में उठिए बैठे।अपने हम-उम्र बूढ़ों पर भबतियाँ कसिए।ख़िज़ाब का इस्तिमाल जारी रखिए और हकीमों के इश्तिहारों का बग़ौर मुताला कीजिए।

दिलेयर बनने का तरीक़ा

दूसरे तीसरे रोज़ चिड़ियाघर जा कर शेर और दीगर जानवरों से आँखें मिलाइए (लेकिन पिंजरे के ज़्यादा क़रीब मत जाइए) बंदूक़ ख़रीदकर अंगीठी पर रख लीजिए और लोगों को सुनाइए कि किस तरह आपने पिछले महीने एक चीता या रीछ (या दोनों) मारे थे।बार-बार सुनाकर आप ख़ुद यक़ीन करने लगेंगे कि वाक़ई आप ने कुछ मारा था।

बे-रोज़गारी से बचिए

अगर आप बे-रोज़गार हैं तो फ़ौरन इम्पलाइमैंट एक्सचेंज में दर-ख़्वास्त देकर किसी खाते पीते रिश्तेदार के हाँ इंतिज़ार कीजिए और येह याद रखिए कि इंतिज़ार ज़िंदगी का बेहतरीन हिस्सा है।

एक ख़ानगी मशविरा

अगर आप बीवी हैं और आप का ख़ाविन्द थका मांदा दफ़्तर से आता है।आप मुस्कुराहट से उसका इस्तिक़बाल करती हैं और अच्छी-अच्छी बातें सुनाती हैं तो शाम को वह ज़रूर कहीं इधर-उधर चला जायगा।लेकिन अगर आते ही आप उसे बे-भाव की सुना दें, बात-बात पर लड़ें और परेशान-कुन तज़किरे छेड़दें तो वह मारने की कोशिश करेगा और शाम घर में गुज़ारेगा। अगर कहीं बाहर गया तो साथ ले जाएगा। (मगर येह अमल बार-बार न दोहराया जाये, वर्ना कहीं शौहर मौसूफ़ वापिस घर का रुख़ ही न करे)।

एक कहानी

या तो लोग तक़दीर को कोसते हैं या तदबीर को। यह मसला बहुत नाज़ुक है।मशहूर है कि पहाड़ों में पारस पत्थर होता है।जो चीज़ उसे छू जाये सोना बन जाती है।

एक शख़्स ने छःमहीने की छुट्टी बगै़र तनख़्वाह के ली और क़िसमत आज़माई करने नेपाल पहुँचा।किराए के जानवरों के पांव में ज़ंजीरे बांधीं कि शायद कोई ज़ंजीर पारस पत्थर से छू जाए।हर वक़्त उन्हें जंगलों में लिए-लिए फिरता। दिन गुज़रते गए और कुछ न बना।आख़िर छुट्टी ख़त्म हुई।जानवर और ज़ंजीरे लौटा कर क़िस्मत को बुरा-भला कह रहा था कि जूता उतारते वक़्त मालूम हुआ कि चंद मीख़ें सोने की बन चुकी हैं।सोनार के पास गया,उसने मीख़ें तौल कर क़ीमत बताई........येह पूरे छः महीने की तनख़्वाह थी।

इस से नताइज ख़ुद निकालिये लेकिन तक़दीर और तदबीर पर लानत मलामत न कीजिए और क़िस्मत आज़माई के लिए पहाड़ों की तरफ़ मत जाइए।

गुफ़्तगू का आर्ट

जो कुछ कहने का ईरादा हो ज़रूर कहिए।दौरान-ए-गुफ़्तुगू ख़ामोश रहने की सिर्फ़ एक वजह होनी चाहिए,वह ये कि आप के पास कहने को कुछ नहीं है।वर्ना जितनी देर जी चाहे बातें कीजिए।अगर किसी और ने बोलना शुरू कर दिया, तो मौक़ा हाथ से निकल जायगा और कोई दूसरा आप को बोर करने लगेगा (बोर वह शख़्स है जो उस वक़्त बोलता चला जाए, जब आप बोलना चाहते हों)।

चुनांचे जब बोलते-बोलते सांस लेने के लिए रुकें तो हाथ के इशारे से वाज़ेह कर दें कि अभी बात ख़त्म नहीं हुई या क़ता-ए-कलामी माफ़ कह कर फिर से शुरू कर दीजिए।अगर कोई दूसरा अपनी तवील गुफ़्तुगू ख़त्म नहीं कर रहा तो बे-शक जमाइयाँ लीजिए, खांसिए, बार-बार घड़ी देखिए...... “अभी आया”..... कहकर बाहर चले जाइए या वहीं सो जाइए।

येह बिलकुल ग़लत है कि आप लगातार बोल कर बहस नहीं जीत सकते।अगर आप हार गए तो मुख़ालिफ़ को आप की ज़हानत पर शुबा हो जायगा।मजलिसी तकल्लुफ़ात बेहतर हैं या अपनी ज़हानत पर शुबा करवाना?

अलबत्ता लड़ाइए मत, क्यूँकि इस से बहस में ख़लल आ सकता है।

कोई ग़लती सरमद हो जाए तो इसे कभी मत मानिए।लोग टोकें, तो उल्टे-सीधे दलाएल बुलंद आवाज़ में पेश करके उन्हें ख़ामोश करा दीजिए, वर्ना वह ख़्वाह मख़्वाह सर पर चढ़ जाएंगे। दौरान-ए-गुफ़्तुगू में लफ़्ज़ “आप” का इस्तेमाल दो या तीन मर्तबा से ज़्यादा नहीं होना चाहिए।असल चीज़ “में” है। अगर आप ने आप अपने मुतअल्लिक़ न कहा, तो दूसरे अपने मुतअल्लिक़ कहने लगेंगे।

तारीफ़ी जुमलों के इस्तेमाल से परहेज़ कीजिए।कभी किसी की तारीफ़ मत कीजिए।वर्ना सुनने वाले को शुबा हो जाएगा कि आप उसे किसी काम के लिए कहना चाहते हैं।अगर किसी शख़्स से कुछ पूछना मतलूब हो, जिसे वह छुपा रहा हो, तो बार-बार उसकी बात काट कर उसे चिड़ा दीजिए।वकील इसी तरह मुक़द्दमे जीतते हैं।

दूसरों को मुतअस्सिर करना

अगर आप हर किसी से अच्छी तरह पेश आए।हाथ दबाकर मुसाफ़ा किया। क़रीब बैठे और गर्म-जोशी से बातें कीं,तो नताएज निहायत परेशानकुन हो सकते हैं।वह ख़्वाह मख़्वाह मुतअस्सिर हो जाएगा और न सिर्फ़ दोबारा मिलना चाहेगा,बल्कि दूसरों से तआरुफ़ करा देगा।यह तीसरों से मिलाएंगे और वह औरों से।चुनांचे इतने मुलाक़ाती और वाक़िफ़-कार इकट्ठे हो जाऐंगे कि आप छुपते फिरेंगे।

मुम्किन है कि लोग मुतअस्सिर होकर आप को भी मुतअस्सिर करना चाहें।वह बिला ज़रूरत बग़ल-गीर होंगे।हाथ दबाएंगे और क़रीब बैठने की कोशिश करेंगे।

लिहाज़ा किसी को मुतअस्सिर करने की कोशिश मत कीजिए।बिलफ़र्ज़ अगर आप किसी को मुतअस्सिर कर रहे हों, तो ख़याल रखिए कि आप और उस शख़्स के दरमियान कम-अज़-कम तीन गज़ का फ़ासिला हो,वर्ना वह मुतअस्सिर होते ही आप से बग़ल-गीर होने की कोशिश करेंगे।(होसकता है कि कहीं आप भी उस से मुतअस्सिर न हो जाएं........ज़िंदगी पहले ही काफ़ी पेचीदा है)।

कभी मत काहिए कि.... “आप से मिल कर बड़ी ख़ुशी हुई।” बल्कि उस से पूछिए कि कहीं वह तो आप से मिलकर ख़ुश नहीं हो रहा।अगर येह बात है तो ख़बर-दार रहिए।

रिश्तेदारों से तअल्लुक़ात

दूर के रिश्तेदार सबसे अच्छे होते हैं।जितने दूर के हों उतना ही बेहतर है।मिस्ल मशहूर है कि दूर के रिश्तेदार सुहाने।

तर्बियत-ए-ईतफ़ाल

बच्चों से कभी-कभी नर्मी से पेश आइए।

बच्चे सवाल पूछें तो जवाब दीजिए मगर इस अंदाज़ में कि दोबारा सवाल न कर सकें। अगर ज़्यादा तंग करें तो कह दीजिए जब बड़े होगे सब पता चल जायगा। बच्चों को भूतों से डराते रहिए।शायद वह बुज़ुर्गों का अदब करने लगें।बच्चों को दिलचस्प किताबें मत पढ़ने दीजिए,क्यूँकि कोर्स की किताबें काफ़ी हैं।

अगर बच्चे बे-वक़ूफ़ हैं तो परवा न कीजिए।बड़े होकर या तो जीनियस बनेंगे या अपने आपको जीनियस समझने लगेंगे।बच्चे को सबके सामने मत डाँटिए।इसके तहत-उस-शऊर पर बुरा असर पड़ेगा।एक तरफ़ ले जाकर तन्हाई में उसकी ख़ूब तवाज़ो कीजिए।

बच्चों को पालते वक़्त एहतियात कीजिए कि वह ज़रूरत से ज़्यादा न पल जाएँ,वर्ना वह बहुत मोटे हो जाएंगे और वालिदैन और पब्लिक के लिए ख़तरे का बाइस होंगे।

अगर बच्चे ज़िद करते हैं तो आप भी ज़िद करना शुरू कर दीजिए।वह शर्मिंदा हो जाएंगे।

माहिरीन का इसरार है कि मौज़ूँ तर्बियत के लिए बच्चों का तजज़िया-ए-नफ़सी कराना ज़रूरी है।लेकिन इस से पहले वालिदैन और माहिरीन का तजज़िया-ए-नफ़सी करा लेना ज़्यादा मुनासिब होगा।देखा गया है कि कुंबे में सिर्फ़ दो तीन बच्चे हों तो वह लाडले बना दिए जाते हैं।लिहाज़ा बच्चे हमेशा दस बारह होने चाहिएं ताकि एक भी लाडला न बन सके।

इसी तरह आख़िरी बच्चा सब से छोटा होने की वजह से बिगाड़ दिया जाता है, चुनांचे आख़िरी बच्चा नहीं होना चाहिए।

मर्दों के लिए दुबला होने का तरीक़ा

मुलाहज़ा हो “अज़मत का राज़”........

ख़वातीन के लिए दुबला होने की तरकीब

आज से मन्दर्जा ज़ेल परहेज़ी ग़ज़ा शुरू कर दीजिए..........

नाशते पर.......एक उबला हुआ अंडा।बगै़र दूध और शकर के चाय

दोपहर को.......उबली हुई सब्ज़ी,बगै़र शोरबे का थोड़ा सा गोश्त, एक चपाती

सहपहर को.......एक बिस्कुट। बगै़र दूध और शकर की चाय

रात को.......उबला हुआ गोश्त, सब्ज़ी, डेढ़ चपाती, फल, बगै़र दूध और शकर की काफ़ी

(इस परहेज़ी ग़िज़ा के इलावा साथ-साथ बावर्चीख़ाने में नमक चखने के सिलसिले में पुलाव, मुर्ग़न सालन और पराठे।मीठा चखते वक़्त हलवा, खीर और फ़िर्नी।“ये बिल्ली तो नहीं थी?” के बहाने बालाई,दूध और मक्खन।“दिखा तो सही तो क्या खा रहा है” के बहाने बच्चों के चॉकलेट और मिठाईयाँ)

बअज़ औक़ात इस परहेज़ी ग़िज़ा का असर नहीं होता।तअज्जुब है?

मर्दों के लिए मोटा होने का नुस्ख़ा

भैंस रखना। दफ़्तर की मुलाज़िमत। दोपहर के खाने के बाद दही की लस्सी और क़ैलूला।सारे खेल छोड़कर सिर्फ़ शतरंज और ताश.......और अगर आउट डोर गेम ही खेलना हो तो बैडमिंटन खेलिए, बस।

ख़वातीन के मोटा होने की तरकीब

किसी ख़ास तरकीब की ज़रूरत नहीं।इस सिलसिले में कुछ कहना सूरज को चिराग़ दिखाना है।

तसख़ीर-ए-हब्ब

तअज्जुब है कि ऐसे अहम मौज़ू पर इस क़दर कम लिखा गया है।मुसीबत ये है कि माहिरीन तसख़ीर-ए-हब्ब सब कुछ सेग़ा-ए-राज़ में रखते हैं।बस कभी-कभी इस क़िस्म के इश्तिहार छपते हैं.......

“मोहब्बत के मारों को मुज़्दा”

“मोहब्बत एक हफ़्ते के अंदर-अंदर क़दमों में ना लौटने लगे तो दाम वापिस! ”

इसके अलावा इमतिहान में कामियाबी, औलाद की तरफ़ से ख़ुशी, ख़तरनाक बीमारीयों से शिफ़ा, मुक़द्दमा जीतना, तलाश-ए-मआश,अफ़्सर को ख़ुश करने के वादे भी होते हैं।इश्तिहार में एक मूंछों वाले (या दाढ़ी वाले) चेहरे की तस्वीर,कई सनअदें और सर्टीफ़िकेट भी होते हैं,लेकिन इस सिलसिले में ना किताबों में कुछ मौजूद है,ना रसाईल में।ईधर हमारे मुल्क में तसख़ीर-ए-हब्ब की क़दम-क़दम पर ज़रूरत महसूस होती है।हर शख़्स उस चश्मा-ए-हैवाँ की तलाश में है।अगरचे मुसन्निफ़ की मालूमात इस मौज़ू पर न होने के बराबर हैं।ताहम उसने दूसरों के तजुर्बों से चंद मुफ़ीद बातें अख़ज़ की हैं।

सबसे पहले येह वज़ाहत ज़रूरी है कि चाहने वाला मर्द या औरत।और इधर महबूब का तअल्लुक़ किस जिंस से है?लिहाज़ा सहूलत के लिए इन हिदायात को तीन हिस्सों में तक़सीम किया गया है।यानी

1-अगर महबूब औरत है।

2-अगर महबूब मर्द हो (और सिनफ़-ए-नाज़ुक के किसी फ़र्द को इसमें दिलचस्पी हो)

3-अगर महबूब शादीशुदा हो (और फ़रेफ़्ता होने वाला मर्द हो या औरत)

1-अगर महबूब औरत हो

महबूब चुनते वक़्त येह एहतियात लाज़िम है कि रिश्तेदारों पर हरगिज़ आशिक़ न हों।इसके बाद इर्द-गिर्द और पड़ोस में रहने वालों से भी हत्त-उल-वसअ एहतिराज़ करें।(ये तजुर्बाती फार्मूले हैं और तालिब-ए-हब्ब को वजह पूछे बगै़र उन पर अंधा-धुंद अमल करना चाहीए)

महबूब से मुलाक़ात के लिए जाते वक़्त पोशाक सादा होनी चाहिए(रूमाल पर ख़ुशबू ना छिड़किए।कहीं महबूब या आप को ज़ुकाम न हो जाए)।ख़ुराक सादा हो (प्याज़ और लहसुन के इस्तेमाल से परहेज़ कीजिए)।मूंछों को हरगिज़ थूक दीजिए वर्ना महबूब ख़ौफ़-ज़दा हो जाएगा।वैसे भी फ़ी-ज़माना बनी-संवरी मूंछों का असर तबा-ए-नाज़ुक पर कोई ख़ास अच्छा नहीं पड़ता (इसका फ़रमाइशी मूंछों पर इतलाक़ नहीं होता)।अगर महबूब को आप से कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं तो इस्तिक़बाल यूँ होगा....... “तशरीफ़ आवरी का शुक्रिया।बड़ी तकलीफ़ की आप ने।भाई जान बस आते ही होंगे,आप बैठिए।मैं दादा जान को अभी भेजती हूँ।लेकिन अगर महबूब को वाक़ई मोहब्बत है तो वह भागा-भागा आयगा और आप के दोनों हाथ पकड़ कर कहेगा.......बिल्लू जी!।”(या इसी किस्म का कोई और मेहमला जुमला इस्तेमाल करेगा)

महबूब को यकसानियत से बोर मत कीजिए।हर इतवार को मिलते हों तो दूसरी तीसरी मर्तबा मंगल को मिलने जाइए।अगली मर्तबा जुमे को।बल्कि एक टाइम टेबल बना लीजिए।

माहिरीन का ख़याल है कि औरतों को संजीदा मर्द इसलिए पसंद आते हैं कि उन्हें यूंही वहम सा हो जाता है कि ऐसे हज़रात उनकी बातें ग़ौर से सुनते हैं।लिहाज़ा तसख़ीर-ए-हब्ब करते वक़्त ‘गुफ़्तुगू का फ़न’ में जो कुछ लिखा है, उसे महबूब के लिए नज़र अंदाज कर दीजिए।

न सिर्फ़ महबूब की बातें ख़ामोशी से सुनते रहिए।बल्कि उसे यक़ीन दिला दीजिए कि दुनिया में फ़क़त आप ही ऐसे शख़्स हैं,जिसके लिए महबूब की हर उल्टी सीधी बात एक मुस्तक़िल वजह मसर्रत है।

महबूब से ज़्यादा बहस मत कीजिए। अगर कोई बहस छिड़ जाए तो जीतने का बेहतरीन नुस्ख़ा ये है कि महबूब की राय से मुत्तफ़िक़ हो जाइए और ज़रा जल्दी कीजिए, कहीं महबूब दोबारा अपनी राय न बदल ले।

अगर महबूब आप की हर बात पर मुस्कुरा दे और लगातार हँसता रहे,तो इसका मतलब ये भी हो सकता है कि उसे अपने नफ़ीस दाँतों की नुमाइश मक़सूद है (ऐसे मौक़े पर महबूब से पूछिए कि इन दिनों कौन सी टूथपेस्ट इस्तेमाल हो रही है)।

अगर महबूब अपनी तारीफ़ें सुनकर नाक भौं चढ़ाए और “हटिए भी” वग़ैरा कहे तो समझ लीजिए कि उसे मज़ीद तारीफ़ चाहिए।

महबूब के मेकअप पर भूल कर भी नुक्ता चीनी न कीजिए।शायद चेहरा इसलिए सुर्ख़ किया गया हो कि ये पता न चल सके कब BLUSH किया (फ़क़त इस सूरत में एतराज़ कीजिए जबकि महबूब का रंग ख़ुदा न-ख़्वास्ता मुश्की हो।अगरचे गर्म खित्तों में ऐसे महबूब इफ़रात से पाय जाते हैं)।

वैसे हर क़िस्म की तन्क़ीद से परहेज़ कीजिए।जो लोग ज़्यादा नुक्ता चीनी करते हैं, उनसे महबूब की बे-ज़ारी बढ़ती जाती है और थोड़े दिनों के बाद मोहब्बत में उनकी हैसियत वही हो जाती है जो टेनिस में Marker की।

दो बातों से महबूब को मसर्रत हासिल होती है।एक तो येह कि कोई उस से कह दे कि उसकी शक्ल किसी ऐक्ट्रेस से मिलती है।दूसरे येह कि उसकी जो रक़ीब है वह तो यूँ ही इंट्लेक्चुअल सी है।महबूब की बहन (अगर बहन की उम्र पंद्रह और पैंतालीस के दरमियान हो) के सामने महबूब की कभी तारीफ़ें मत कीजिए, वर्ना नताएज बड़े हैरत अंगेज़ निकलेंगे और अगर महबूब के ऐब मालूम करने हों तो उसकी सहेलियों के सामने उसे अच्छा कहकर ख़ुदा की क़ुदरत का तमाशा देखिए। कभी छुप-कर महबूब को किसी से लड़ते हुए ज़रूर देखिए।या महबूब को किसी से लड़ा दीजिए।बहुत से लर्ज़ा-ख़ेज़ हक़ायक़ का इन्किशाफ़ होगा।

अगर महबूब कई मर्तबा ये जताए कि आप बिलकुल नौ उम्र से लड़के नज़र आ रहे हैं, तो इसका मतलब ये है कि आप बूढ़े होते जा रहे हैं।

याद रखिए कि महबूब की निगाहों में एक चालीस पैंतालीस बरस का नौजवान एक पच्चीस तीस साला बूढ़े से कहीं बेहतर है (और ऐसे नौ उम्र बूढ़े इन दिनों काफ़ी तादाद में हर जगह मिलते हैं)।

महबूब की सालगिरा याद रखिए लेकिन उसकी उम्र भूल जाईए।बअज़ औक़ात को आप के एहसानात याद नहीं रहते। लेकिन वह फरमाइशें कभी नहीं भूलतीं, जिन्हें आप पूरा न कर सके।

अवाएल-ए-मोहब्बत में महबूब से येह पूछना कि क्या उसे आप से मोहब्बत है? ऐसा ही है जैसे किसी नाविल का आख़िरी बाब पहले पढ़ लेना।

तंगदस्ती मोहब्बत के दुश्मन है।एक क़ीमती तोहफ़ा मिनटों में वह कुछ कर सकता है, जो शायर महीनों बरसों में नहीं कह सकते।

अगर महबूब किसी और पर आशिक़ है तो आप की सब कोशिशें रायगां जाएंगी।ऐसी हालत में बराबर-बराबर छोड़वा देने वाले मक़ूले पर अमल कीजिए और रिटायर हो जाना बेहतर होगा और अगर महबूब किसी और की जानिब मुल्तफ़ित भी नहीं, लेकिन आप के सब हरबे बेकार नज़र आने लगीं,तो येह न समझिए कि महबूब संगदिल या नाक़ाबिल-ए-तसख़ीर है.......वह फ़क़त तजर्बा-कार है।एहतियातन येह मज़ा मालूम कर लीजिए कि महबूब ने अपने साबिक़ा चाहने वालों से क्या सुलूक किया था।वही सुलूक दोहराया भी जा सकता है और ग़ालिबन दोहराया जाएगा।

ये हमेशा याद रखिए कि जैसे-जैसे महबूब की उम्र बढ़ती जाएगी, वह बिल्कुल अपनी अम्मी की तरह होती चली जाएगी।

2- अगर महबूब मर्द हो

महबूब में सबसे पहली चीज़ येह नोट कीजिए कि आया वह आपको नोट कर रहा है या नहीं।

महबूब से न कभी मज़हब पर बहस कीजिए, न रूस पर।बल्कि उससे येह भी मत पूछिए कि वह कमाता क्या है?

महबूब के सामने कभी किसी औरत की बुराई मत कीजिए।इस से वह बे-हद मुतअस्सिर होगा।

महबूब से येह हरगिज़ मत पूछिए कि उसने मस्नूई दाँत कब लगवाए थे।

येह याद रखिए कि एक हसीन औरत की सब औरतें दुश्मन हैं और उनका समझौता नहीं हो सकता लिहाज़ा मोहतात रहिए।

महबूब की तारीफ़ करते वक़्त वज़ाहत से काम लीजिए।येह नहीं कि आप ख़ूब हैं।वजीहा हैं।लाखों में एक हैं।बल्कि ये कि आपका माथा कुशादा है।बाल घुंघरियाले हैं।शाने माशाअल्लाह मर्दों जैसे चौड़े हैं।

जो मर्द अपनी मूंछों की देख भाल करते हैं, वह ख़ुद पसंद होते हैं।लेकिन जो शो करते हैं, वह भी कम ख़ुद पसंद नहीं होते।

अगर महबूब कलब से पी-कर आया हो, तो कभी मत जतलाइए।सिर्फ़ ये कहकर मुँह बना लीजिए कि आज फिर आप ने Ginger पी है।इस से वह इस क़दर ख़ुश होगा कि बयान से बाहर है।

महबूब के साथ कहीं भाग जाने के ख़याल को कभी दिल में ना लाइए,किसी के साथ भागना बे-हद फ़ुज़ूल हरकत है।

अगर महबूब गंजा हो तो ना उसकी बुलंद पेशानी का ज़िक्र लीजिए, ना उसके सर की तरफ़ देखिए।

मर्द अपनी मोहब्बत का वास्ता देकर महबूब की पुरानी मोहब्बतों के मुतअल्लिक़ पूछा करते हैं। उन्हें कुछ न बताइए, वर्ना पछताना पड़ेगा।

आप की बातें ख़्वाह कितनी ही बेजा क्यूँ न हों,जब तक आप की आँखों में आँसू नहीं आते लिहाज़ा पेशतर इसके कि महबूब को पता चल सके कि क्या हो रहा है।आप रोना शुरू कर दीजिए। अपनी रक़ीबों से हर दम ख़बर-दार रहिए।महबूब जिन औरतों के मुतअल्लिक़ बातें करता रहे, उनकी परवा न कीजिए।लेकिन जब वह किसी औरत के ज़िक्र से जान-बूझकर गुरेज़ करे, तो समझ जाइए कि दाल में काला है।

येह तो नामुमकिन है कि आप अपने दिल का राज़ किसी और को नहीं बताएंगी।लेकिन बताते वक़्त ये कभी मत कहिए.......“तुम्हें क़सम है जो किसी और से कहा तो।”इस से सुनने वाली को फ़ौरन शुबा होगा और वह उसी वक़्त सब से कह देगी।

महबूब आप की ताज़ा तरीन तस्वीरें मांगेगा.......रसमन अख़लाक़न मोहब्बत से।लेकिन जब वह आप की बचपन की तस्वीर मांगे तो समझ लीजिए कि वह बहुत दूर की सोच रहा है और सब कुछ होकर रहेगा।

शुरू शुरू में महबूब को आप के चच्चे, मामूं और भाई वग़ैरा अच्छे ना लगते हों तो कुछ देर इंतिज़ार कीजिए।आहिस्ता-आहिस्ता वह ख़ुद सीधा हो जाएगा।

अक़लमंद महबूब को क़ाबू में रखना ज़्यादा मुश्किल नहीं।लेकिन अगर महबूब बे-वक़ूफ़ हो तो ज़हीन से ज़हीन औरत के लिए भी उसे सँभालना मुहाल होगा।

3-अगर महबूब शादीशुदा हो

(ये मौज़ू बे-हद ज़रूरी है, क्यूँकि आज-कल शादी-शुदा महबूब से इश्क़ करना ना सिर्फ़ आम हो गया है, बल्कि फ़ैशन में शामिल है।रोज़-ब-रोज़ उसकी ऐहमियत हर ख़ास-व-आम पर वाज़ह होती जा रही है)।

चूँकि शादी-शुदा महबूब मुक़ाबिलतन तजर्बा-कार होता है, इसलिए बड़े एहतियात की ज़रूरत है।इन हिदायात पर बड़ी संजीदगी से अमल करना चाहिए। लेकिन अगर शुबा हो जाए कि किसी हिदायत को महबूब पहले से जानता है तो उसे वहीं तर्क कर दीजिए (हिदायत को) और दूसरी पर अमल शुरू कर दिजिए (हिदायात पर)

शादी-शुदा महबूब को मसख़्ख़र करने के लिए सबसे अहम चीज़ न हुस्न है, न क़ाबिलियत....... बल्कि प्रोपेगींडा है।लिहाज़ा थोड़े-थोड़े अर्से के बाद अपने मुतअल्लिक़ कोई ख़बर उड़ा दीजिए.......कि आप का इरादा विलायत जाने का है.......कभी क्लासिकल डांस सीखने के मंसूबे बांधिए तो कभी उर्दू में एम.ए करने की ख़बर मशहूर कर दीजिए।

पहले महबूब मुंतख़ब कीजिए, फिर उसे चंद फ़ालतू ख़वातीन-व-हज़रात के साथ मदऊ कीजिए.......पिकनिक....... अदबी महफ़िल.......ताश.......या किसी और बहाने से।बाद में आहिस्ता-आहिस्ता दूसरे लोगों को निकालते जाइए। हत्ता कि सिर्फ़ आप और महबूब बाक़ी रह जाएं।(इस तरह महबूब को शुबा नहीं होगा।शुबा हुआ भी तो देर में होगा)

बेहतर तो येह होगा कि एक वक़्त में कई जगह कोशिश कीजिए।अगर कामियाबी दस फ़ीसद भी हुई तब भी Average नातसल्ली बख़श नहीं।

कुछ ऐसा इंतिज़ाम कीजिए कि महबूब हर वक़त आप के मुतअल्लिक़ क़यास आराइयाँ करता रहे।मसलन खोई-खोई निगाहों से ख़ला में तका कीजिए। ज़रा-ज़रा सी देर के बाद ठंडे सांस लीजिए। वह बार-बार पूछेगा.......क्या बात है? की हुआ? कुछ मुझे भी तो बताओ?

गुफ़्तुगू में अपने या महबूब के शरीक-ए-हयात का ज़िक्र बिलकुल ना आने दीजिए।यूँ ज़ाहिर कीजिए, जैसे इस दुनिया में न आपका कोई है,ना उसका।

अगर महबूब बे-रुख़ी बरतता हो तो उसका ख़ूब तआक़ुब कीजिए....... बार-बार फ़ोन कीजिए.......मिलने जाइए.......सँदेसे भेजिए.......ख़त लिखीए.......किसी दिन इतना वह तंग आयगा कि आप पर आशिक़ हो जायगा। अलमारियों में चंद ऊटपटांग ज़ख़ीम किताबें, दीवारों पर माडर्न आर्ट की बे-तुकी तस्वीरें और कमरे में सितार या वाइलन ज़रूर रखिए।ख़्वाह आपको उनसे ज़रा भी दिलचस्पी न हो।महबूब येह समझेगा कि आपकी तबीयत फ़न-काराना है।

तक़रीबों और पार्टियों में ज़रा देर से जाईए,ताकि लोग पूछें कि येह कौन है? बैठने के लिए ऐसी जगह चुनिए जहाँ मुनासिब रोशनी और मौज़ूं लोग हों।

अगर शरीक-ए-हयात साथ हो तो सबके सामने उसे कभी डार्लिंग मत कहीए,बल्कि पब्लिक में उसका नोटिस ही ना लीजिए।

अपने बच्चे को कभी साथ मत ले जाइए। एक बच्चे की मौजूदगी सारे हुस्न-व-जमाल को ख़त्म कर देने के लिए काफ़ी है। महबूब के बच्चों को भी लिफ़्ट न दीजिए।

ज़रा से झूट से अजीब दिलकशी पैदा हो जाती है।याद रखिए कि बचपन में झूट बोलना गुनाह समझा जाता है।शादी से पहले उसे एक ख़ूबी तसव्वुर किया जाता है।मोहब्बत में इसे आर्ट का दर्जा हासिल है और शादी के बाद झूट की पुख़्ता आदत पड़ जाती है।

ऐनक कभी मत लगाइए, ख़्वाह दो तीन फ़ुट सामने कुछ भी ना दिखाई देता हो। मगर ज़रा सँभल-सँभल कर चलिए, रास्ते में गढ़हे भी होते हैं।

दावतों पर या तो खाना खाकर जाइए या वापिस आकर खाइए।कम-ख़ुराक होना इंट्लेक्चुअल पने की निशानी समझी जाती है। अफ़्वाहों में ख़ास दिलचस्पी लीजिए। अगर महबूब को सुनाने के लिए नई-नई अफ़्वाहें आप के पास हुईं, तो वह बा-क़ाएदगी से सुनने आएगा।

अगर लोग आप के या महबूब के मुतअल्लिक़ बुरा भला कहते हैं, तो ज़रा ख़याल न कीजिए।अक्सर देखा गया है कि जिन लोगों में बुराइयाँ नहीं होतीं, उनमें खूबियाँ भी बहुत कम होती हैं। तभी सारे दिलचस्प लोग बिगड़े हुए होते हैं।

मोहब्बत ख़त्म करते वक़्त हरगिज़ मत लड़िए, ख़ुदा जाने कल कलां कहीं साबिक़ महबूब ही से वास्ता न पड़ जाए।

आख़िर में मुसन्निफ़ सिफ़ारिश करेगा कि कभी-कभी अपने रफ़ीक़-ए-हयात से भी थोड़ी सी मोहब्बत कर लिया कीजिए।इसका भी तो आप पर हक़ है। जैसा कि एक मशहूर मुफ़क्किर ने कहा है कि अपने रफ़ीक़-ए-हयात से मोहब्बत करना मोहब्बत ना करने से हज़ार दर्जे बेहतर है।

चंद जनरल हिदायात

महबूब से तभी मिलिए जब उसकी सेहत अच्छी हो (और आप की भी)। दाँत या सर के ज़रा से दर्द से दुनिया अंधेर मालूम होने लगती है।

सब जानते हैं कि हसीन इतने ख़तरनाक नहीं होते,जितने सादा शक्ल वाले।आख़िर-उज़-ज़िक्र छुपे रुस्तम होते हैं।येह हमदर्दी जताते हैं।समझने की कोशिश करते हैं।एहसानों से ज़ेर-बार कर देते हैं।निशाना दुरुस्त करके फिर वार करते हैं।लेकिन हसीन अपने आप ही मगन रहते हैं।उन्हें आइना देखने और कपड़े सिलवाने से ही फुर्सत नहीं मिलती।

ये भी देखा गया है कि ज़हीन इंसान बड़ी मुश्किलों से आशिक़ होते हैं। उनके ख़याल में मोहब्बत तख़य्युल की फ़तह है....... ज़हानत पर।

ग़ालिबन महबूब एक दूसरे से इसलिए बोर नहीं होते कि वो हर वक़्त एक दूसरे के मुतअल्लिक़ बातें करते रहते हैं।

(मोहब्बत की शादी के ज़िक्र से क़सदन गुरेज़ किया गया है क्यूँकि ये जुदा मौज़ू है।लेकिन उल्मा का क़ौल है कि जहाँ मोहब्बत अंधी है, वहां शादी माहिर-ए-अमराज चश्म है)

.......

नोट: अगर इस मज़मून से एक का भी भला होगा तो मुसन्निफ़ समझेगा कि उसकी सारी मेहनत बिल्कुल राइगाँ गई।

No comments:

Post a Comment